रहस्य क्या है ?
10 वा(दसवाँ) द्वार का....!
(आप सभी से प्राथना करता हूँ अगर आप को मेरे विचार गलत लगते है तो मुझे क्षमा करना क्योकि यह विचार मेरे अपने है , मै किसी की आलोचना नहीं
कर रहा हूँ में किसी की आलोचना के काबिल भी नहीं हूँ )
यह तो हम सभी जानते है की मानव के शरीर रूपी घर मै नौ दरवाजे /द्वार है जो प्राकृतिक रूप से खुले रहते हैं , जैसे
1... दो आंख,
2... नाक के दो छिद्र,
3... दो कानों के छिद्र,
4... मुख व
5... मल मूत्र विसर्जन के दो द्वार जो अंत में आता है
अब सबसे मुख्य बात जो समझने की है दरवाजे /द्वार किसको कहते है। .यानि की द्वार उसको कहते है जिसमे से आवागमन ( आना और जाना )हो सके |
जैसे की ......
दो आंखे......
जिनसे हम संसार की हर चीज को देख सकते है ,
नाक के दो छिद्र ......
जिनसे शरीर मै सांसो का आना और जाना लगा रहता है |
दो कानों के छिद्र ......
जिनसे हम दुनिया की हर बात सुन और समझ सकते है।
मुख......
द्वार जो शरीर के लिये खाने, पीने और स्वाद का काम करता है।
दो मल मूत्र विसर्जन के......
यह दो द्वार शरीर की गंदगी को निकलने का काम करते है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है
यानि द्वार वही होते है जो नजर आते है और जिस से मानव शरीर और प्रकति का आपस मै सम्बन्ध होता है , मानव शरीर के नौ द्वार सभी को नज़र आते है।
जैसे की हमारे ऋषिमुनि और धार्मिक ग्रंथो से पता चलता हैं मानव शरीर के मस्तक पर स्थित भौंहो के मध्य तीसरे नेत्र का स्थल हैं जिसको आज्ञाचक्र का भी नाम दिया जाता हैं और इसको ही दशम द्वार मानते है , पर समझने की बात है की यह द्वार तो किसी को भी नज़र नहीं आता है। यह जो भौंहो के मध्य का स्थान है यह मानव शरीर में सोचने, विचारों और ध्यान लगाने का एकमात्र ही केंद्र स्थान है, जहाँ से मनुष्य अध्यात्म की और यात्रा भी कर सकता है, और अपने जीवन के नित रोज़ के कार्यकर्मो पर विचार करता है ,यह भी कह सकते है यह स्थान मनुष्य के शरीर रूपी बिल्डिंग का मीटिंग रूम है | भौंहो के मध्य मै केवल मानव ध्यान लगाने की क्रिया कर सकता है यह सही और सत्य है, पर यह हर किसी मानव की पहुँच से बहुत दूर की बात है , इस मंजिल पर कोई - कोई एक मानव शरीर ही विजय /पहुँच पता है।
लेकिन जो दसवाँ द्वार हैं इस द्वार का कार्य हमारे शरीर के नौ द्वारों से बिल्कुल भिन्न और अलग हटकर है | जैसे की। .....
मनुष्य शरीर के जो नौ द्वार है वह शरीर के लिए बाहर के आभामंडल की रचनाओं को
दो आँखों के द्वारों से देखने की,
दो नाक के द्वारों से सूंघने की,
दो कानों से सुनाने की,
मुँह से बोलने और स्वाद को चखने की, और
द्वौ द्वार जो शरीर के मलमूत्र
को शरीर से बाहर निकलते है |
इन सब का सम्बन्ध शरीर के स्वादों और किर्यो से हैं ,जो एक मनुष्य शरीर को चलने के लिए जरुरी हैं
लेकिन यह दसवाँ द्वार किसी भी तरह के स्वाद में लिप्त नहीं होता ,यह तो एक एडमिनिस्ट्रेटर जो मनुष्य के शरीर का कंट्रोलर यानि पुरे शरीर को नियंत्रित करता है यह दसवाँ द्वार बाकि नौ द्वारा के स्वादों को पुरे शरीर में सुचारू रूप से लागू करके चलता है |
जैसे की......
किसी भी एक बड़े ऑफिस में एक मीटिंग रूम होता हैं जहाँ पर ऑफिस को चलने के लिए नये -नये मुद्दों ,विवादों पर विचार किये जाते हैं और फिर ऑफिस में एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा उन विचारो को लागु किया जाता हैं ,अगर एडमिनिस्ट्रेटर मजबूत होगा तो विचार पूरी तरह से लागु होंगे, नहीं तो वह विचार ऑफिस में लागु नहीं हो पाएंगे।
ठीक इसी तरह.... मनुष्य शरीर में दो भौंहो के मध्य में एक मीटिंग स्थान होता हैं जहाँ पर सोच ,विचार और ध्यान विराजमान रहते हैं , जो हमारे शरीर का दसवाँ द्वार हैं वह इन ध्यान और विचारो को नौ द्वारों के स्वादों के साथ मिलकर एक एडमिनिस्ट्रेटर बनकर इस शरीर को सुचारु रूप से चलता हे | जब कभी हमारे शरीर का एडमिनिस्ट्रेटर यानि दसवां द्वार में कोई दिकत आ जाती हैं तो हमारा शरीर भी काम करना बंद कर देता हैं |
अब जिस 10 वें द्वार की मै बात करने जा रहा हूँ , उस 10 वें द्वार को सब देख रहे है ,और यह द्वार मानव शरीर का सबसे अधिक सूक्ष्म और शरीर का संचालक द्वार है ,जो हमारे शरीर का केंद्र बिंदु हैं ,जिसे हम नाभि कहते हैं ,
पर बड़ी हैरानी की बात है उसको हमारे शास्त्रों और ऋषिमुनि 10 वा द्वार नहीं मानते, इसको हम नजरअंदाज क्यों कर रहे है क्योकि यही वह द्वार /दरवाजा है जिस के रास्ते से माँ के गर्व मै अँधेरी गुफा मै पल रहे जीव को खाना -पीना और साँस( शरीर मै आत्मा का प्रवेश होता है ) मिलती है।
इस सत्ये का प्रमाण हमारे ग्रंथो मै विराजमान है और हिन्दू शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि से हुआ था। दरअसल, इस संसार में प्रत्येक
मनुष्य का जन्म नाभि से ही होता है। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। विष्णु
पाताल लोक में ही रहते हैं। इस धरती और संपूर्ण ब्रह्मांड का भी नाभि केंद्र है।
नाभि केंद्र से ही संपूर्ण जीवन संचालित होता है। इसलिए मनुष्य की नाभि को ब्रह्मस्थान भी कहा जाता है। जिस नाभि से ब्रह्मदेव का जन्म हो तो उस द्वार की महत्वता क्या होगी मै इसको असली 10 वा द्वार मानता हूँ कोई मने या न मने , क्योकि इस द्वार से शरीर मै वायुप्रण का आना जाना होता है|
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नाभि हमारी जीवन ऊर्जा का केंद्र है। कहते हैं कि मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में 6 मिनट तक रहते हैं।
शरीर में दिमाग से भी महत्वपूर्ण स्थान है नाभि का। हमारे ग्रंथो मै लिखा है की नाभि शरीर का प्रथम दिमाग होता है, जो प्राणवायु से संचालित होता है। जो हर मानव के शरीरी मै विराजमान है, हमारा सूक्ष्म शरीर नाभि ऊर्जा के केंद्र से जुड़ा रहता है।
हमारे ग्रंथों से यह भी प्रमाण मिलते है की ऋषि मुनि और तपस्वी लोग अपना शरीर को छोड़ कर दूसरे लोक घूम कर अपने शरीर मै वापिस आ जाते थे। यह सत्ये है ऋषि मुनि और तपस्वी लोग इसी नाभि के रास्ते आवागमन करते थे।
यदि कोई संत या सिद्धपुरुष शरीर से बाहर निकलकर सूक्ष्म शरीर से कहीं भी विचरण करता रहता है, तो उसके सूक्ष्म शरीर की नाभि से स्थूल शरीर की नाभि के बीच एक रश्मि जुड़ी रहती है।यदि यह टूट जाती है तो व्यक्ति का अपने स्थूल शरीर से संबंध भी टूट जाता है।
योग शास्त्र में नाभि चक्र को मणिपुर चक्र कहते हैं। नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर तीसरा चक्र है, जो 10 दल कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है, उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को 'कर्मयोगी' कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं। इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है।इस लिये इसे 10 वा द्वार कहे तो
गलत नहीं होगा |
आज भी शास्त्रों की जानकारी रखने वाले मानते है की नाभि द्वार से जो मांगोगे वह मिलेगा क्योकि इस द्वार का सम्बन्ध सीधा अदृशय शक्ति जिसको हम परमात्मा कहते है के साथ होता है |
यह भी सत्ये है की सच्चे और उच्च कोटि का जीवन जीने वालो के प्राण आखरी समय मै नाभि के रास्ते ही निकलते है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं, उनमें से एक है नाभि जिस से रोग की पहचान और यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर का कौन-सा अंग खराब हो रहा है या रोगग्रस्त है। नाभि के संचालन और इसकी चिकित्सा के माध्यम से सभी प्रकार के रोग ठीक किए जा सकते हैं।
इस नाभि यानि 10 वा द्वार और भी अनगनित रहस्य है जो इस मानव शरीर को चला रहे है ,नाभि केंद्र से ही संपूर्ण जीवन संचालित होता है। इसलिए मनुष्य की नाभि को ब्रह्मस्थान भी कहा जाता है।
अगर यह नाभि द्वार न होता तो मानव शरीर का क्या होता इस पर आप के विचार क्या है।
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